वो बैठी है मेरे सामने




वो बैठी है मेरे सामने
इस दिल से आवाज नहीं निकलती
उसे क्या बताऊँ उसके लिये इस दिल में मोहब्बत है इतनी
की बस उसी के लिए तो इस जिस्म से अब तक जान नहीं निकलती

वो सोचती है कि बस इस ज़िस्म का हूँ मैं
पर वो कम्बखत मेरी रूह को नहीं समझती
बस्ती है मेरी जान मेरी जान में बस
और वो पगली इतनी सी बात नहीं समझती

रातो को बस उसके ख्याल में खोया रहता हूँ
दिन के उजाले में बस उसके सपनो में सोया रहता हूँ
वो रुठ जाती हैं मुझसे जैसे मैं उसकी परवाह नहीं करता
उस दीवानी को क्या बताऊँ की उसके बिना तो मेरा एक पल नहीं कटता

वो हर रोज आ जाती है बिन बुलाये मेरे सपनो में
उसके कारण सुबह उठने का दिल नहीं करता
बस सोता रहू ताकि वो मेरे सपनो से ओझल ना हो जाये
और वो अंजान इन बातों से खुद ही उठा देती हैं मुझे मेरे ख्वाबो से

प्यार किया हैं तो निभाऊंगा हर पल उससे
हर पल साथ रहेंगे हम अब ये वादा है मेरा उससे
यही खुदा से दुआ की हैं मैंने हर पल अपने इबादत में
की पूरी हो जाये हर एक मन्नत उसकी
जो उसने कभी मांग भी हो अपने ख्वाबो में
अब तो इल्तिजा हैं मेरी चाहें जान भी निकल जाये
पर मारना भी है तो अपनी जान की बाहों में


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